Tuesday, July 19, 2011

PYAR

   "प्यार"


दो बूँद जो आँखों से टपक गया
दो बूँद जो गालो से लिपट गया
मन फिर आज क्रंदन को होता है
उस हसिन ख्वाब में खोता है
जो तेरे आगोश मे बिताए थे
जब ये साँसे आस पास टकराये थे
कहा गए वो पलछिन वो किसने चुराए
क्या वो नजदीकिया इतनी करीब न थी
की "प्यार" कहलाये
क्या "प्यार" उस विरक्ति का नाम है
क्या विरहा ही उसकी पहचान है
क्या "प्यार " मन को तडपता है
दुखो का अंबार भी लाता है
रूह तन से जुदा
तन मन से जुदा
मन उस पल से जुदा
हर पल बस उसका ही इन्तजार
क्या इसको ही कहते है "प्यार"
"प्यार " तो एक अनुभूति है
" प्यार "तो एक ज्योति है
खुद को जला के रोशन करती है
कहाँ खुद के लिए कभी सोचती है
कभी बडी बेमानी सी लगती है
की उसकी हसरत में
तारड़पता है तरस्ता है भटकता है
दिल-ए- बर्बाद करता है
न जाने क्यु फिर भी "प्यार" करता है
"प्यार" तो एक आश है
"प्यार" एक प्याश है
"प्यार" एहसाश है
"प्यार" विश्वास है
"प्यार" वोह जोश है
"प्यार" मदहोश है
"प्यार" एक आगोश है
"प्यार" तो निर्दोष है
"प्यार" निर्लिप्त है
"प्यार" संयुक्त है
कुछ ही साथ निभाते है
सब कहाँ मिल पाते है
बंदिशो की आड में
मौके की ताड में
कइ बार दिल टुटते
हाथो से हाथ छुटते है
फिर इसका वह्जूद कौन मीटा पाया
"प्यार" हर दौर में "प्यार" ही कहलाया